निकले थे कभी हम घर स
घर दिल से मगर नहीं निकल
घर बसा है हर धड़कन म
क्या करें हम ऐसे दिल क
बड़ी दूर से आए ह
बड़ी देर से आए ह
पर ये न कोई समझ
हम लोग पराए ह
कट जाए पतंग जैस
और भटके हवाओं म
सच पूछो तो ऐस
दिन हमने बिताए ह
पर ये न कोई समझ
हम लोग पराए ह
यही नगर यही है बस्त
आँखें थी जिसे तरसत
यहाँ खुशियाँ थी कितनी सस्त
जानी पहचानी गलिय
लगती हैं पुरानी सखिय
कहाँ खो गई वो रंग रलिय
बाजार में चाय के ढाब
बेकार के शोर शराब
वो दोस्त वो उनकी बात
वो सारे दिन सब रात
कितना गहरा था गम
इन सबको खोने क
ये कह नहीं पाए हम
दिल में ही छुपाए ह
पर ये न कोई समझ
हम लोग पराए ह
निकले थे कभी हम घर स
घर दिल से मगर नहीं निकल
घर बसा है हर धड़कन म
क्या करें हम ऐसे दिल क
क्या हमसे हुआ
क्या हो ना सक
पर इतना तो करना ह
जिस धरती पे जन्मे थ
उस धरती पे मरना ह
जिस धरती पे जन्मे थ
उस धरती पे मरना ह
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